"भगवान विष्णु योगनिद्रा में क्यों जाते हैं?"

  "भगवान विष्णु योगनिद्रा में क्यों जाते हैं?"

यह सवाल सिर्फ एक धार्मिक घटना नहीं है, बल्कि इसमें गहराई से जुड़ा है तत्वज्ञान, ब्रह्मांडीय संतुलन और मानव जीवन के आध्यात्मिक संकेत

आइए इसे सरल, भक्ति और तात्त्विक तीनों दृष्टिकोणों से समझते हैं:


🔱 1. पौराणिक कारण – ब्रह्मांडीय संतुलन बनाए रखने के लिए

आषाढ़ शुक्ल एकादशी को भगवान विष्णु क्षीरसागर में योगनिद्रा में चले जाते हैं और यह निद्रा चार माह तक चलती है — जिसे चातुर्मास कहा जाता है।

➤ इस काल में:

  • सृष्टि का संचालन ब्रह्मा, शिव और देवी शक्ति करती हैं।

  • यह समय धर्म, तप, त्याग और साधना के लिए होता है।

  • देवताओं का "शयन" यानी उनके क्रियात्मक कार्यों का स्थगन।

यह योगनिद्रा "निष्क्रियता" नहीं, बल्कि "आंतरिक सक्रियता" है।


🧘‍♂️ 2. तात्त्विक अर्थ – ईश्वर का आत्मविलीन हो जाना

➤ "योगनिद्रा" का अर्थ:

यह कोई सामान्य निद्रा नहीं है, बल्कि एक अलौकिक ध्यान अवस्था है, जहाँ भगवान अपनी ही चेतना में स्थित हो जाते हैं — पूर्ण तटस्थता, संतुलन और समरसता की अवस्था

जैसे गीता में भगवान कहते हैं –
"सर्वभूतेषु यः पश्येन्मां..." — हर कण में मैं ही हूँ।
उसी तरह योगनिद्रा में वे जगत में व्याप्त रहकर भी निर्लिप्त रहते हैं।


🌦️ 3. ऋतु चक्र और प्रकृति के अनुकूलता का संकेत

आषाढ़ से कार्तिक तक का समय भारतीय उपमहाद्वीप में:

  • मानसून का होता है

  • तापमान में उतार-चढ़ाव होता है

  • शरीर में रोग-प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है

इस समय प्रकृति भी विश्राम की मुद्रा में जाती है:

  • अधिक उपज नहीं होती

  • जीव-जंतु विश्राम करते हैं

  • खेती सीमित होती है

भगवान का योगनिद्रा में जाना, ब्रह्मांडीय ऊर्जा के पुनः संतुलन का प्रतीक है।


🧭 4. आध्यात्मिक संकेत – "भीतर जाने" का समय

जब भगवान योगनिद्रा में जाते हैं, तो यह भक्तों के लिए संकेत होता है:

"अब तुम बाहर नहीं, भीतर खोजो।"

चातुर्मास में:

  • विवाह वर्जित होता है

  • नई शुरुआतें रोक दी जाती हैं

  • उपवास, ध्यान, जप और आत्मनिरीक्षण बढ़ता है

👉 मतलब, यह काल है आत्मा से मिलने का, न कि संसार में दौड़ने का।


🕉️ 5. श्रीविष्णु की लीला – संतुलन की शिक्षा

विष्णु को पालनहार कहा गया है। वह केवल सृष्टि का संचालन ही नहीं करते, बल्कि हमें सिखाते भी हैं कि:

  • जीवन में क्रिया और विश्राम दोनों आवश्यक हैं।

  • सतत कार्य नहीं, समय पर विराम भी परम आवश्यक है।

  • हर जीव के भीतर भी एक समय आता है, जब उसे योगनिद्रा (आत्मचिंतन) में जाना चाहिए।


निष्कर्ष:

"विष्णु का योगनिद्रा में जाना हमें सिखाता है कि सच्ची शक्ति कभी-कभी मौन, स्थिरता और भीतर की यात्रा में होती है।"



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