षष्ठी व्रत जुलाई 2025: पूजा विधि, कथा, महत्व और संतान रक्षा का पर्व

 जानिए 1 जुलाई 2025 को आने वाले षष्ठी व्रत की कथा, पूजा विधि, धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व हिंदी में। मातृत्व और संतान रक्षा का पावन पर्व।

पवित्र षष्टी व्रत जुलाई 2025: मातृ की कृपा, षष्ठी देवी का जन्म और संस्कृति की पावन छाया

🔹 भूमिका:

भारतीय संस्कृति में षष्ठी व्रत को मातृत्व, संतति-सुख और जीवन की पवित्रता से जोड़ा जाता है। यह व्रत मुख्य रूप से षष्ठी माता को समर्पित होता है जिन्हें बच्‍चों की रक्षिका और जन्म की देवी माना गया है। उत्तर भारत में इसे छठी, छठ, या छठी मइया के नाम से भी जाना जाता है।

✨ "जहां छठी मइया की छाया हो, वहां संतति-सुख, स्वास्थ्य और समृद्धि बनी रहती है।"

1 जुलाई 2025 को यह आषाढ़ शुक्ल षष्ठी तिथि के दिन मनाया जाएगा। यह दिन मातृ शक्ति की आराधना का विशेष अवसर है, खासकर नवजात शिशु के जन्म के 6वें दिन यह व्रत विशेष रूप से मनाया जाता है।


📜 1. षष्ठी देवी कौन हैं?

  • षष्ठी माता को बाल गोपाल की रक्षिका, संतानों की देवी, और प्रकृति की माता माना जाता है।

  • उन्हें भगवान स्कंद (कार्तिकेय) की माता भी कहा जाता है।

  • संस्कृत में 'षष्ठी' का अर्थ होता है – छठा दिन। इसलिए नवजात शिशु के छठे दिन यह व्रत माताओं द्वारा किया जाता है।

🔱 प्रमुख रूप:

  • शक्ति रूपा – देवी दुर्गा की अंश रूपा

  • गौरी रूपा – सौम्यता और करुणा की प्रतिमूर्ति

  • बालक रक्षा देवी – शिशु जन्म, विकास और संरक्षण की देवी


📖 2. पौराणिक कथा:

एक समय एक ब्राह्मण दंपत्ति थे जिनके कोई संतान नहीं थी। वे बहुत दुखी रहते थे। किसी संत के कहने पर पत्नी ने षष्ठी व्रत किया। देवी प्रसन्न हुईं और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई।

लेकिन जब उनका बच्चा 6 दिन का हुआ तो वह अचानक लापता हो गया। ब्राह्मण दंपत्ति ने जब दोबारा देवी की आराधना की, तब माता प्रकट हुईं और कहा:

“मैंने तुम्हारा पुत्र इसलिए लिया क्योंकि तुमने मुझे व्रत के बाद धन्यवाद नहीं दिया। जो व्रत करता है, उसे कृतज्ञ भी रहना चाहिए।”

ब्राह्मण दंपत्ति ने क्षमा मांगी और तब जाकर उन्हें उनका पुत्र वापस मिला। तब से यह परंपरा शुरू हुई कि बच्चे के जन्म के 6वें दिन माताएं षष्ठी व्रत रखती हैं।


🕉️ 3. व्रत एवं पूजा विधि:

📅 समय:

  • षष्ठी तिथि सूर्योदय से पहले शुरू होती है और संध्या तक चलती है।

🛕 पूजा सामग्री:

  • मिट्टी की प्रतिमा या षष्ठी माता की तस्वीर

  • हल्दी, रोली, चावल, जल, दीपक, धूप

  • फल, नारियल, केला, मिठाई, चने, खील-लावा

📿 विधि:

  1. प्रातः स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें।

  2. पूजा स्थान पर माता षष्ठी की प्रतिमा स्थापित करें।

  3. उन्हें चावल, खील, फल, फूल अर्पित करें।

  4. दीपक जलाकर 'जय षष्ठी मइया की' कहें।

  5. कथा पढ़ें और आरती करें।


🌕 4. नवजात के जन्म की छठी:

भारत में बच्चे के जन्म के छठे दिन को 'छठी' कहा जाता है। इस दिन:

  • बच्चे के लिए विधिवत पूजा होती है।

  • उसके भाग्य को देवी षष्ठी लिखती हैं।

  • बच्चे की माता 24 घंटे उपवास रखकर व्रत करती है।

✨ विश्वास:

  • इस दिन लिखी जाती है शिशु की जीवनरेखा

  • इसलिए इसे संस्कार का प्रारंभ भी माना जाता है।


🧘 5. मानसिक और पारिवारिक लाभ:

लाभ प्रभाव
मानसिक संतुलन माँ का मन शांत रहता है
पारिवारिक एकता सभी परिजन पूजा में सम्मिलित होते हैं
शिशु विकास में ऊर्जा सकारात्मकता और सुरक्षा मिलती है
धन्यवाद और कृतज्ञता का भाव मातृत्व का आदर होता है

🔬 6. वैज्ञानिक दृष्टिकोण:

  • जन्म के 6वें दिन तक शिशु का इम्यून सिस्टम विकसित होने लगता है।

  • परिवार और माँ द्वारा ध्यान देने से emotional bonding गहरी होती है।

  • पूजा, ध्यान और शांति का माहौल माँ और बच्चे के लिए लाभकारी होता है।


🔯 7. ज्योतिषीय महत्व:

  • षष्ठी तिथि को चंद्रमा और मंगल का प्रभाव रहता है।

  • नवजात की कुंडली पर चंद्रमा का प्रभाव निर्णायक होता है।

  • इस दिन ग्रहों की शांति हेतु भी पूजा की जाती है।


🌍 8. विभिन्न क्षेत्रों में षष्ठी व्रत की परंपरा:

राज्य नाम विशेषता
उत्तर प्रदेश छठी पूजा नवजात के लिए विशेष रूप से की जाती है
बिहार छठ व्रत (नन्हा) लोकगीतों और रीति-रिवाजों के साथ
बंगाल षष्ठी पूजा दुर्गा के बालरूप की पूजा
महाराष्ट्र अंगारकी षष्ठी पुत्र प्राप्ति की कामना के साथ

🙏 9. FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न):

Q1. क्या पुरुष भी षष्ठी व्रत कर सकते हैं?
हाँ, अगर संतान सुख या माता के स्वास्थ्य की कामना है, तो पुरुष भी व्रत रख सकते हैं।

Q2. क्या यह व्रत हर षष्ठी तिथि को होता है?
हर माह की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को यह व्रत किया जा सकता है, पर नवजात के जन्म के बाद की छठी तिथि विशेष होती है।

Q3. क्या व्रत के दौरान कुछ खा सकते हैं?
बहुत सी महिलाएं निर्जल या फलाहार व्रत करती हैं। स्वास्थ्य अनुसार पालन करें।


🌟 निष्कर्ष:

षष्ठी व्रत केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि यह मातृत्व, संतति रक्षा और सांस्कृतिक मूल्यों का पर्व है। यह व्रत परिवार में संतुलन, प्रेम और श्रद्धा को जन्म देता है।

✨ “षष्ठी देवी का आशीर्वाद हो तो संतान जीवन में सौभाग्य बनकर आती है।”

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