जगन्नाथ मंदिर की मूर्तियाँ हर 12 साल में क्यों बदली जाती हैं? – रहस्य, परंपरा और वैज्ञानिक पहलू
जगन्नाथ मंदिर में हर 12 साल में मूर्तियाँ क्यों बदली जाती हैं? जानिए नवकलेबर की रहस्यमयी प्रक्रिया, ब्रह्म तत्व का रहस्य, और इसका आध्यात्मिक और वैज्ञानिक विश्लेषण।
जगन्नाथ मंदिर की मूर्तियाँ हर 12 साल में क्यों बदली जाती हैं? – रहस्य, परंपरा और वैज्ञानिक पहलू
✍️ भूमिका:
उड़ीसा के पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर सिर्फ आस्था का केंद्र नहीं, बल्कि रहस्यों का अद्भुत भंडार है। यहाँ हर 12 से 19 वर्षों के बीच भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियाँ बदली जाती हैं। लेकिन ऐसा क्यों? क्या भगवान बदल सकते हैं? क्या मूर्तियाँ मृत्यु को प्राप्त होती हैं? इस लेख में हम इस गूढ़ परंपरा के हर पहलू को विस्तार से समझेंगे।
🧿 1. कौन हैं भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा?
भगवान जगन्नाथ को श्रीकृष्ण का रूप माना जाता है, बलभद्र उनके भ्राता और सुभद्रा बहन हैं। इनकी मूर्तियाँ लकड़ी की होती हैं, जो समय के साथ जीर्ण हो जाती हैं। परंतु इन मूर्तियों के साथ "ब्रह्म तत्व" जुड़ा होता है, जो उन्हें चेतन बनाता है।
🌳 2. नवकलेबर: नई मूर्तियों में प्रवेश
नवकलेबर दो शब्दों से बना है – नव (नया) और कलेबर (शरीर)।
इसका अर्थ है – भगवान एक शरीर छोड़कर दूसरे में प्रवेश करते हैं, जैसे श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता में बताया था।
भगवद्गीता (2.22):
"वासांसि जीर्णानि यथा विहाय, नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।"
"जैसे मनुष्य पुराने वस्त्र त्यागकर नए धारण करता है, वैसे ही आत्मा पुराने शरीर को त्यागकर नया शरीर धारण करती है।"
🪵 3. पवित्र लकड़ी 'दारु' कहाँ से लायी जाती है?
विशेष स्थानों पर उगे नीम के वृक्ष को चुना जाता है जिसमें विशिष्ट लक्षण होते हैं:
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बिना गाँठ की लकड़ी
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चंद्र और शंख का निशान
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पास में नदी और श्मशान का होना
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साँप की बांबी और शिव मंदिर होना
🌌 4. ब्रह्म तत्व का रहस्य
भगवान की मूर्तियों के अंदर एक रहस्यमयी ऊर्जा होती है जिसे "ब्रह्म तत्व" या "दारु ब्रह्म" कहा जाता है। यह तत्व सदियों से एक शरीर से दूसरे में स्थानांतरित होता आ रहा है।
कहते हैं:
"ब्रह्म को कोई देख नहीं सकता, लेकिन पुरी के महापात्र ब्राह्मण, आँख पर पट्टी बांधकर इसे स्थानांतरित करते हैं।"
🔁 5. मूर्तियाँ क्यों बदलनी पड़ती हैं?
लकड़ी की बनी मूर्तियाँ समय के साथ नष्ट होने लगती हैं, परंतु यह केवल नष्ट होने का मामला नहीं है। यह एक पुनर्जन्म की प्रक्रिया है। माना जाता है कि जैसे इंसान एक शरीर छोड़ता है, वैसे ही भगवान भी।
⚰️ 6. देवताओं की मृत्यु और अंत्येष्टि
जब मूर्तियाँ बदली जाती हैं, तो पुरानी मूर्तियों को विधिपूर्वक दफनाया जाता है। यह क्रिया “देवताओं के दाह संस्कार” की तरह होती है। एकमात्र जगह है जगन्नाथपुरी, जहाँ मूर्तियों की मृत्यु और अंत्येष्टि होती है।
🔐 7. ब्रह्म परिवर्तन की रात
यह सबसे रहस्यमयी समय होता है। पूरी रात मंदिर बंद कर दिया जाता है। केवल विशेष पुजारी, आँख पर पट्टी बांधकर, हाथों में दस्ताने पहनकर “ब्रह्म” को एक मूर्ति से दूसरी में स्थानांतरित करते हैं।
इस पूरी प्रक्रिया को "गुप्त नवकलेबर" कहा जाता है।
🕉️ 8. क्या यह वैज्ञानिक रूप से भी तर्कसंगत है?
ध्यान और ऊर्जा विज्ञान के अनुसार, हर वस्तु एक आवृत्ति (frequency) पर कंपन करती है। माना जाता है कि जगन्नाथ मूर्तियों में एक ऐसी ऊर्जा होती है जो समय के साथ लकड़ी के साथ सामंजस्य नहीं रख पाती और नई मूर्तियों की आवश्यकता होती है।
📜 9. ऐतिहासिक और ज्योतिषीय गणना
नवकलेबर की तिथि “आषाढ़ महीने में पूर्णिमा, जब दो बार आषाढ़ मास आता है (अधिमास)” तब पड़ती है। यह घटना हर 8, 12, 19 वर्षों में एक बार होती है।
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पिछला: 2015
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अगला संभावित: 2034
🏁 निष्कर्ष:
जगन्नाथ मंदिर की मूर्तियाँ सिर्फ लकड़ी के पुतले नहीं हैं — वे चेतना, ब्रह्म और परंपरा का जीवंत संगम हैं। हर 12–19 वर्षों में जब मूर्तियाँ बदलती हैं, तब एक अदृश्य शक्ति एक शरीर छोड़कर दूसरे में प्रवेश करती है। यह परंपरा सिर्फ आस्था नहीं, बल्कि मानव जीवन और आत्मा की पुनरावृत्ति का प्रतीक है।
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